दो बार के प्रधानमंत्री एक ऐसे राजनेता का किस्सा... जिसने राजनीतिक जिंदगी में सुचिता का रहा हिस्सा, वो पद्म विभूषण से सम्मानित हैं... उन्हें भारत रत्न मिला... लेकिन ताउम्र किराए के मकान में रहते रहे, किराया बाकी रह गया तो मकान मालिक ने निकाल दिया... भारत के उसी प्रधानमंत्री कहानी पर नहीं होगा यकीन... लेकिन ये हकीकत है
4 जुलाई 1898 को सियालकोट में जन्मे गुलजारीलाल नंदा प्रारंभिक शिक्षा सियालकोट और लाहौर में प्राप्त की... बाद में उच्च शिक्षा के लिए वो इलाहाबाद आ गये...इलाहाबाद से उन्होंने कला संकाय में पोस्ट ग्रेजुएशन किया... वहीं से कानून की डिग्री भी ली... राजनीति में भले ही आज वंशवाद का बोलबाला है, लेकिन नंदा ने अपने दोनों बेटों को राजनीति में नहीं आने दिया...1932 में महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन के दौरान और 1942-1944 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय उन्हें जेल भी जाना पड़ा था...गुलजारीलाल नंदा मुंबई विधानसभा के दो बार सदस्य रहे थे...1947 में नंदा की देखरेख में ही इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना हुई...नंदा 1950-1951, 1952-1953 और 1960-1963 में भारत के योजना आयोगके उपाध्यक्ष रहे...वो 1964 तक केंद्रीय मंत्री बने रहे...
खांटी गांधीवादी गुलजारी लाल नंदा तीन बार भारत के कार्यवाहक-अंतरिम प्रधानमंत्री रहे...दोनों ही मौके दुखद परिस्थितियों के कारण आये। पहली बार जवाहर लाल नेहरू के निधन पर और दूसरी बार लालबहादुर शास्त्री के निधन पर उन्हें कार्यवाहक प्रधानमंत्री का दायित्व सीनियर कैबिनेट मंत्री होने के कारण सौंपा गया था...आजादी की लड़ाई में गांधी के समर्थकों में शुमार नंदा को अपना अंतिम जीवन किराये के मकान में गुजारना पड़ा... उन्हें स्वतंत्रता सेनानी के रूप में 500 रुपये की पेंशन स्वीकृत हुई थी... उन्होंने इसे लेने से ये कह कर इनकार कर दिया था कि पेंशन के लिए उन्होंने लड़ाई नहीं लड़ी थी... बाद में मित्रों के समझाने पर कि किराये के मकान में रहते हैं तो किराया कहां से देंगे, उन्होंने पेंशन कबूल की थी... किराया बाकी रहने के कारण एक बार तो मकान मालिक ने गुलजारी लाल नंदा को घर से निकाल भी दिया था... बाद में इसकी खबर अखबारों में छपी तो सरकारी अमला पहुंचा और मकान मालिक को पता चला कि उसने कितनी बड़ी भूल कर दी है... ऐसे राजनेता को राजनीति का रत्न कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, जो पीएम और केंद्रीय मंत्री रहने के बावजूद अपने लिए एक अदद घर नहीं बना सका और किराये के मकान में अपनी जिंदगी गुजार दी...
उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंचने के बाद गुलजारीलाल नंदा को एहसास हुआ कि राजनीति अब पहले जैसी नहीं रही...ये बदल गयी है... उन्होंने इसे देश के लिए घातक बताया था। राजनीति में अपराधी तत्वों बढ़ते वर्चस्व से वो चिंतित थे... नंदा एक अच्छे राजनीतिज्ञ तो थे ही एक अच्छे लेखक भी रहे... उन्हें कई तरह के पुरस्कार भी मिले... देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न उन्हें 1997 में और दूसरा सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से उन्हें विभूषित किया गया... उनका निधन 100 साल की उम्र में 15 जनवरी, 1998 को हुआ... इन्हें एक स्वच्छ छवि वाले गांधीवादी राजनेता के रूप में याद रखा जाएगा।
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